Book Mundan Sanskar Pandit Ji in Chandar Nagar Ghaziabad
Table of Contents
ToggleMundan Sanskar (मुंडन संस्कार क्या है )
Mundan Sanskar, also known as the first haircut ceremony, is a significant ritual in Hindu culture. This ceremony is performed to purify the child and ensure their well-being. It symbolizes the shedding of past life’s negativity and the start of a new, pure life.
यह आठवां संस्कार चूड़ाकर्म है, जिसको केशच्छेदन एवं मुंडन संस्कार भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार मुंडन संस्कार करने से बच्चे का मानसिक विकास होता है गर्भ में शिशु पर जो बाल आते हैं वह अपवित्र माने जाते हैं और मुंडन संस्कार के माध्यम से शिशु के बाल को पवित्र किया जाता है जिसके द्वारा मस्तिष्क का विकास होता है
मुंडन संस्कार कब करें !
इसमें आश्वलायन गृह्यसूत्र का मत ऐसा है :-
तृतीये वर्षे चौलम् ॥1॥ उत्तरतोऽग्नेव्रीहियवमाषतिलनां पृथक्पूर्ण शरावाणि निदधाति ॥2॥अश्व. गृ़ .
इसी प्रकार पारस्कर गृह्यसूत्रादि में भी है-
सांवत्सरिकस्य चूड़ाकरणम् ॥
यह चूडाकर्म अर्थात् मुण्डन बालक के जन्म से तीसरे वर्ष वा एक वर्ष में करना। उत्तरायणकाल शुक्लपक्ष में जिस दिन आनन्द मंगल हो, उस दिन यह संस्कार करें।
मुंडन संस्कार विधिः-
Mundan Sanskar is a profound ritual that holds deep spiritual and cultural significance. It marks a new beginning for the child, ensuring their physical and spiritual well-being. The ceremony, steeped in tradition, continues to be an important part of Hindu culture, adapting gracefully to modern times.
चार शरावे ले; एक में चावल, दूसरे में यव, तीसरे में उर्द और चौथे शरावे में तिल भर के बेदी के उत्तर में धर देवे। अग्न्याधान समिदाधान कर अग्नि को प्रदीप्त करके जो समिधा प्रदीप्त हुई हो उस पर लक्ष्य देकर आघारावाज्य-भागाहुति ४, चार) और व्याहृति पाहुति ४ (चार) और ८ (आठ) आज्याहृति, सब मिल के १६ (सोलह) आहुति देके, “ओं भूर्भुवः स्वः । अग्न आयूषि०” इत्यादि मन्त्रों से चार आज्याहुति प्रधान होम की देके,व्याहृति आहुति चार और स्विष्टकृत् मन्त्र से एक आहुति मिलके पांच घृत की आहुति देवे, इतनी क्रिया करके कर्मकर्ता परमात्मा का ध्यान करके नाई की ओर प्रथम देख के-
ओ3म् आयम॑गन्त्सवि॒ता क्षुरेणोशष्णेन वाय उदकेनेहिं। आदित्या रुद्रा वसव उन्दन्तु सचेतसः सोम॑स्य राज्ञों वपत प्रचेतसः॥ अथर्व.
इस मन्त्र को जप करके, पिता बालक के पृष्ठभाग में बैठ के किञ्चित् उष्ण और किञ्चित् ठण्डा जल दोनों पात्रों में लेके –
जल लगाकर केशों के समूह को काटे। अर्थात् प्रथम दक्षिण बाज के केश काटने की विधि पूर्ण हुए पश्चात् बाई ओर के केश काटने की विधि करे। तत्पश्चात् उसके पीछे धागे के केश काटे। परन्तु चौथी बार काटने में “येन पूषा०” इस मन्त्र के बदले-
ओम् येन भूरिश्चरा दिवं ज्योक् च पश्चाध्दि सूर्यम्। तेन ते वापामि ब्राह्मणा जीवातवे जीवनाय सुश्लोक्याय स्वस्तये।। पार0 2.1. 16।।
यह मंत्र बोल के चौथी बार छेदन करे। तत्पश्चात् –
ओम् त्र्यायुषं जमद॑ग्नेः कश्यप॑स्य त्र्यायुषम्। यद्देवेषु त्र्यायुषं तन्नो अस्तु त्र्यायुषम्।।
यजु ८० ३। मं० ६२ ॥ पार० २।१।१४ ॥
इस एक मन्त्र को बोल के शिर के पीछे के केश एक बार फिर काट के इसी “थो त्र्यायुष०” मन्त्र को बोलते जाना और औधे हाथ के पृष्ठ से बालक के शिर पर हाथ फेर के मन्त्र पूरा हुए पश्चात् छुरा नाई के हाथ में देके
ऊँ यत्क्षुरेण मर्चयता सुपेशसा वप्ता वापसी केशान्। शुन्धि शिरो मास्यायुः प्र मोषीः ॥
अश्व0 1। 17। 15।।
इस मन्त्र को बोल क, नापित से पथरी पर छुरे की धार तेज करा के, नावित से बालक का पिता कहे कि इस शीतोष्ण जल से बालक का शिर अच्छे प्रकार कोमल हाथ से भिजो, सावधानी और कोमल हाथों से क्षौर कर, कहीं छुरा न लगने पावे। इतना कह के कुण्ड से उत्तर दिशा में नापित को लेजा, उस के सन्मुख बालक को पूर्वाभिमुख बैठा के जितने केश रखने हों उतने ही केश रक्खे। परन्तु पांचों ओर थोड़ा-थोड़ा केश रखावे अथवा किसी एक ओर रक्खे, अथवा एक वार सब कटवा देवे, पश्चात् दूसरी बार से केश रखने अच्छे होते हैं।
जब क्षौर हो चुके, तब कुण्ड के पास धरा हुआ देने योग्य पदार्थ वा शरावा आदि कि जिसमें प्रथम अन्न भरा था नापित को देवे ।
और मुण्डन किये हुए सब केश, दर्भ, शमीपत्र और गोबर नाई को देवे, यथायोग्य उसको धन वा वस्त्र भी देवे। और नाई केश, दर्भ, शमीपत्र और गोबर को जंगल में लेजा गड्ढा खोद के उसमें सब डाल ऊपर से मिट्टी से दाब देवे, अथवा गोशाला, नदी वा तालाब के किनारे पर उसी प्रकार केशादि को गाढ़ देवे, ऐसा नापित से कह दे अथवा किसी को साथ भेज देवे, वह उससे उक्त प्रकार करा लेवे ।
क्षौर (मुंडन) हुए पश्चात् मक्खन अथवा दही की मलाई हाथ में लगा बालक के शिर पर लगा के स्नान करा उत्तम वस्त्र पहिना के बालक को पिता अपने पास ले शुभासन पर पूर्वाभिमुख बैठ करके, बालक की माता स्त्रियों और बालक का पिता पुरुषों का यथायोग्य सत्कार करके विदा करें और जाते समय सब लोग तथा बालक के माता पिता परमेश्वर का ध्यान करके –
“ओम् त्वं जीव शरदः शतं वर्धमानः ॥”
इस मन्त्र को बोल बालक को आशीर्वाद देके अपने-अपने घर को पधारें और बालक के माता पिता प्रसन्न होकर बालक को प्रसन्न रखें।
मुंडन हवन के सामान की लिस्ट।
1- देसी घी 500 ग्राम
2- जौ 100 ग्राम
3- काला तिल 100 ग्राम
4- गूगल 100 ग्राम
5- फल
6- फूल ,माला एवं खुले फूल आशीर्वाद हेतु
7- मिठाई
8- एक सूखा नारियल ड्राई फूड वाला गोला पूर्णाहुति के लिए, एव एक जटा वाला नारियल जिसमें पानी हो,
9- धूपबत्ती, माचिस
10- कपूर,दही, शहद, आम का पत्ता
घर का सामान
1- चार कटोरी ,चार चम्मच
2- एक लोटा
3- चार प्लेट
4 -एक दीपक
5 – एक बड़ा कटोरा।
6 – माचिस।
7-हवन कुंड
8-समिधा
9-हवन सामग्री
10-रोली
11-मोली
पांच छोटे घड़े जिसमें एक किलो अनाज आ सके.
1- 1 kg जौ
2- 1 kg चावल,
3- 1 kg उड़द साबुत
4- 500g तिल
5- 50g दही
6- 50g मक्खन।
7- एक नया कंघा
8- दो कटोरी।